माता पार्वती की कठोर तपस्या रंग लाई थी। वर्षों की कठोर साधना,आत्मनियंत्रण, और निःस्वार्थ भक्ति के बाद आखिरकार शिवजी को उन्होंने प्राप्त कर लिया था। लेकिन विवाह जैसा पवित्र बंधन केवल दो देहों का नहीं होता, वह तो आत्मा और परमात्मा का संगम होता है। और यह संगम हुआ था सावन के पवित्र महीने में।
भगवान शिव ने स्वयं देवर्षि नारद को मां पार्वती के पिता हिमालयराज के पास भेजा और पार्वती जी का हाथ मांगने का प्रस्ताव दिया। हिमालयराज और माता मेनावती इस प्रस्ताव से अत्यंत हर्षित हुए — उनकी पुत्री, जो वर्षों से तप में लीन थी, आज स्वयं भगवान शिव की जीवन संगिनी बनने जा रही थी।
सावन का समय था…
चारों ओर हरियाली, शीतल वायु, लहराती वनस्पतियाँ जैसे स्वयं भगवान शिव और मां पार्वती के मिलन हेतु सज रही थीं। नदियाँ कलकल बह रही थीं, आकाश में बादल नृत्य कर रहे थे, और मयूरों की मधुर ध्वनि विवाह के निमंत्रण-सी प्रतीत हो रही थी। प्रकृति स्वयं जैसे यह दैवी विवाह रचा रही थी। राजाओं, ऋषियों, देवताओं और गंधर्वों को आमंत्रित किया गया। शिवजी के बारात की तैयारियाँ भी अत्यंत अलौकिक थीं…
शिव जी की बारात: सबसे अलौकिक दृश्य
शिवजी की बारात किसी भी सांसारिक विवाह से अलग थी। प्रभु महादेव खुद श्मशानवासी, गले में नाग, जटाओं में गंगा, शरीर पर भस्म और सवारी नंदी बैल पर। उनके साथ भूत, प्रेत, गण, राक्षस और योगियों की टोली। जब यह बारात हिमालयराज के महल पहुँची तो सभी स्त्रियाँ भयभीत हो गईं। माता मेनावती ने कहा –
“ये बारात नहीं, यह तो किसी तांत्रिक की टोली लगती है!”
तब पार्वती जी मुस्कुराईं और बोलीं –
“ये मेरे प्रभु हैं – वे जो हर रूप में स्वीकार करने योग्य हैं। भूतनाथ भी वही हैं, भोलेनाथ भी वही हैं।”
यह वाक्य हमें बताता है कि सच्चा प्रेम बाहरी रूप नहीं देखता, वह आत्मा को पहचानता है।
विवाह का दिव्य क्षण—
सावन के अंतिम सोमवार को, विशेष शुभ मुहूर्त में, समस्त वेदों के मंत्रों और ऋषियों के आशीर्वाद के साथ शिव-पार्वती जी का विवाह संपन्न हुआ।
पार्वती जी ने शिव जी को वरमाला पहनाई और शिव ने पार्वती को स्वीकार कर उनके मस्तक पर सिंदूर लगाया। समस्त देवताओं ने पुष्पवर्षा की, ऋषियों ने वेदमंत्रों का पाठ किया, और सम्पूर्ण ब्रह्मांड आनंद से झूम उठा।
यह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं था —
यह प्रेम और वैराग्य का, भक्ति और तप का, आत्मा और परमात्मा का मिलन था।
भावार्थ:
शिव-पार्वती का विवाह यह दर्शाता है कि—
सच्चा प्रेम धैर्य और विश्वास मांगता है,
भक्ति बिना आत्म-समर्पण के अधूरी है,
और जब भक्ति और मन शुभ हो, तो स्वयं ईश्वर भी विवाह का प्रस्ताव देने आते हैं।
सावन का यह महीना विवाह और मिलन का प्रतीक है। जब प्रकृति और स्वयं परमात्मा दोनों हमारे समीप होते हैं। कहते हैं जो स्त्रियाँ इस मास में सोमवार के व्रत रखती हैं, वे मां पार्वती जैसी श्रद्धा से शिव को अपने जीवन में आमंत्रित करती हैं।
आपके लिए संदेश:
इस सावन, शिव और पार्वती के इस दिव्य विवाह को याद कीजिए। हर सोमवार भगवान शिव-पार्वती जी की पूजा अर्चना कीजिए। सच्चे प्रेम, समर्पण और धैर्य का संकल्प लीजिए।
क्योंकि जब मन शांत हो, हृदय पवित्र हो– तो स्वयं ईश्वर भी आपके जीवन में प्रवेश करते हैं।