Saturday, July 19, 2025
spot_img
Homeकहानियाँस्वामी हरिदास और बाँके बिहारी जी की प्रकट लीला

स्वामी हरिदास और बाँके बिहारी जी की प्रकट लीला

एक समय की बात है। वृंदावन की पवित्र भूमि पर एक महान संत निवास करते थे– जिनका नाम स्वामी हरिदास जी था। वे न सिर्फ एक महान तपस्वी थे, बल्कि एक ऐसे संगीतज्ञ भी, जिनके भजन्न सुनकर लगता था मानो आत्मा ही गा रही हो।

स्वामी हरिदास जी दिन-रात अपने आराध्य श्रीकृष्ण की भक्ति में ही मग्न रहते थे। वे वृंदावन के निधिवन नामक स्थान में साधना किया करते थे – वही निधिवन जहाँ राधा-कृष्ण की रासलीलाएँ आज भी रात में गूंजती हैं और समस्त संसार में प्रचलित है।

स्वामी हरिदास जी का जीवन बेहद सरल था। वे बहुत ही सरल व्यक्तित्व के थे, न कोई दिखावा, न कोई इच्छा। बस एक ही चाह “अपने ठाकुर जी के दर्शन” ।

एक दिन की बात है जैसे ही सूरज ढलने को आया, हरिदास जी अपने शिष्यों के साथ निधिवन में बैठे थे। वृक्षों की छाया में वातावरण बड़ा शांत और रहस्यमय था। सभी की इच्छा हुई स्वामी हरिदास जी के मुख से भजन सुनने की तब सभी के आग्रह करने पर उन्होंने अपनी वीणा उठाई और आँखें बंद करके एक भजन गाने लगे:

“माई री! मोहे बाँसुरी वाले की लाज राखो…”

यह कोई साधारण गीत नहीं था। ये उनके हृदय से निकली एक पुकार थी, एक प्रेमी भक्त की पुकार, जो अपने प्रियतम से मिलना चाहता है। उनके स्वर इतने मधुर थे कि समस्त निधिवन जैसे थम गया। पत्तों की सरसराहट रुक गई, पक्षियों की चहचहाहट बंद हो गई, और पवन भी ठहर गई।

तभी कुछ ऐसा अद्भुत हुआ।

भजन के बीच एक दिव्य प्रकाश प्रकाशित हुआ – इतना तेज और फिर भी इतना सुंदर कि आँखें बंद हो जाएं और मन खुल जाए। उस प्रकाश के बीच श्रीकृष्ण और राधा रानी स्वयं प्रकट हो गए। वे मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे, जैसे अपने प्रिय भक्त की भक्ति से प्रसन्न हो।

स्वामी हरिदास जी की आँखों से आँसू बहने लगे। और उनका मन अति भावुक हो गया था। उनका वर्षों का तप, प्रेम और साधना उस क्षण में मानो फलीभूत हो गई थी।

हरिदास जी ने भगवान से प्रार्थना की, “प्रभु, आप तो साक्षात प्रेम हो। कृपा मेरी विनती स्वीकार कीजिए और इसी स्वरूप में सदा के लिए यही विराजमान हो जाइए और अपने भक्तों को दर्शन दीजिए।”

अपने भक्त की विनती सुनकर श्री राधा रानी और श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए एकाकार रूप धारण किया और अपने प्रिय भक्त की इच्छा पूर्ण की। न सिर्फ राधा, न सिर्फ कृष्ण – बल्कि राधाकृष्ण का अद्वितीय संयुक्त रूप धारण किया और यही स्वरूप आज बाँके बिहारी जी के नाम से जाना जाता है।

वहीं निधिवन में, उसी स्थान पर, वह दिव्य मूर्ति प्रकट हुई।

तब से आज तक, वृंदावन में श्री बाँके बिहारी जी का मंदिर हर भक्त को अपनी मोहिनी मुस्कान से आकर्षित करता है। आज श्री राधा कृष्ण अपने इस सुंदर श्री बांके बिहारी रूप में अपने सभी भक्तों को दर्शन देते हैं और उनकी इच्छाएं पूर्ण करते हैं। मंदिर में एक अनोखी परंपरा है – बाँके बिहारी जी की आँखों में कोई भी लंबे समय तक आँख नहीं मिला सकता, इसलिए वहाँ पर दर्शन भी “झलक” में होते हैं। और इसी कारण से आज भी मंदिर में श्री बांके बिहारी और उनके प्रिय भक्तों के बीच पर्दा करने की रस्म है।

क्योंकि कहते हैं — जो उन्हें देख लेता है, वह फिर कहीं और देख ही नहीं पाता।

Worldwide News, Local News in London, Tips & Tricks

- Advertisement -