एक समय की बात है। जब मां आदिशक्ति ने हिमगिरी के राजा हिमालयराज की पुत्री के रूप में धरती पर जन्म लिया। हिमालयराज की पुत्री पार्वती एक अत्यंत तेजस्वी, सुंदर और विदुषी कन्या थीं। परंतु उनके हृदय में एक ही संकल्प था — भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करना।
यह कोई सामान्य प्रेम नहीं था; यह तो आत्मा की पुकार थी अपने परमात्मा के लिए। यह तो जन्मो जन्मो का प्रेम था। मां पार्वती को स्मरण था कि वे पूर्वजन्म में सती थीं — शिव की अर्धांगिनी। लेकिन सती रूप में उनका जीवन अधूरा रह गया था। इसी कारण इस जन्म में उन्होंने उसी अधूरी यात्रा को पूर्ण करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था।
लेकिन भगवान शिव… वे तो वैराग्य की प्रतिमूर्ति थे। समाधि में लीन, सांसारिक बंधनों से परे, सृष्टि के कल्याण में मग्न।
पार्वती इस सत्य से अनजान नहीं थी और वह जानती थीं कि केवल सुंदरता या कुल नहीं, बल्कि तप, भक्ति और पूर्ण समर्पण ही उन्हें शिव तक पहुँचा सकता है। उन्होंने संसार की सुख-सुविधाओं को त्याग कर वन का मार्ग अपनाया।
मां पार्वती ने तपस्या की कठिन राह को अपनाया। वन में उन्होंने वर्षों तक तप किया। गर्मी में अग्नि के चारों ओर बैठकर, शीत ऋतु में बर्फ के बीच रहकर, और जब वर्षा आई — सावन आया — तब बिना छत, बिना विश्राम, केवल एकाग्र ध्यान।
चारों ओर हरियाली, मोर की कूक, झरनों की रुनझुन — पूरी सृष्टि सजी हुई थी। लेकिन पार्वती जी का ध्यान एक ही दिशा में था– उनके आराध्य भगवान शिव।
पार्वती ने ना अन्न खाया, ना जल ग्रहण किया। केवल बेलपत्र, धतूरा और जल अर्पित कर, निरंतर “ॐ नमः शिवाय” का जाप करती रहीं।
🙏 भक्ति का प्रतिफल—
उनकी निःस्वार्थ भक्ति से स्वयं देवताओं का हृदय भी पिघल गया। देवर्षि नारद जी मां पार्वती की कठिन तपस्या देख.. भगवान शिव के पास गए और पार्वती जी की तपस्या का विवरण सुनाया। शिव जी ने अपनी तपस्या से नेत्र खोले और पार्वती की भक्ति को हृदय से स्वीकार किया।
सावन की एक दिव्य संध्या को, भगवान शिव ने पार्वती जी के समक्ष प्रकट होकर कहा – “देवि, तुम्हारा यह प्रेम, यह तप, यह समर्पण – समस्त ब्रह्मांड के लिए आदर्श है। मैं तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में में स्वीकार करता हूँ।”

और इस प्रकार हुआ प्रेम, भक्ति और आत्मा के संगम का दिव्य मिलन।
भावार्थ:
यह कथा केवल शिव-पार्वती के मिलन की नहीं है, यह हमें सिखाती है कि —
सच्चा प्रेम मांगता नहीं, साधना करता है।
समर्पण जब पूर्ण होता है, तब ईश्वर स्वयं प्रकट होते हैं।
सावन का महीना केवल ऋतु नहीं, एक आध्यात्मिक अवसर है। जब प्रकृति, मन और आत्मा एक लय में आते हैं।
भक्तों के लिए प्रेरणा:
इस कथा के माध्यम से माता पार्वती ने हमें सिखाया कि यदि हमारा संकल्प शुद्ध हो, हमारी भक्ति अडिग और निश्छल हो, और हमारा हृदय निर्मल हो। तो कोई भी भगवान शिव से दूर नहीं रह सकता।
हर स्त्री के लिए माता पार्वती एक उदाहरण हैं, और हर भक्त के लिए सावन एक अवसर। स्वयं को शिव में विलीन करने का।