Friday, July 18, 2025
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Homeचालीसा॥ श्री बटुक भैरव चालीसा ॥

॥ श्री बटुक भैरव चालीसा ॥

॥ दोहा ॥

विश्वनाथ को सुमिर मन,  धर गणेश का ध्यान।

भैरव चालीसा रचूं,  कृपा करहु भगवान॥

बटुकनाथ भैरव भजू,  श्री काली के लाल।

छीतरमल पर कर कृपा,  काशी के कुतवाल॥

॥ चौपाई ॥

जय जय श्रीकाली के लाला ।  रहो दास पर सदा दयाला॥

भैरव भीषण भीम कपाली ।  क्रोधवन्त लोचन में लाली॥

कर त्रिशूल है कठिन कराला ।  गल में प्रभु मुण्डन की माला॥

कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला ।  पीकर मद रहता मतवाला॥

रुद्र बटुक भक्तन के संगी ।  प्रेत नाथ भूतेश भुजंगी॥

त्रैलतेश है नाम तुम्हारा ।  चक्र तुण्ड अमरेश पियारा॥

शेखरचंद्र कपाल बिराजे ।  स्वान सवारी पै प्रभु गाजे॥

शिव नकुलेश चण्ड हो स्वामी ।  बैजनाथ प्रभु नमो नमामी॥

अश्वनाथ क्रोधेश बखाने ।  भैरों काल जगत ने जाने॥

गायत्री कहैं निमिष दिगम्बर ।  जगन्नाथ उन्नत आडम्बर॥

क्षेत्रपाल दसपाण कहाये ।  मंजुल उमानन्द कहलाये॥

चक्रनाथ भक्तन हितकारी ।  कहैं त्र्यम्बक सब नर नारी॥

संहारक सुनन्द तव नामा ।  करहु भक्त के पूरण कामा॥

नाथ पिशाचन के हो प्यारे ।  संकट मेटहु सकल हमारे॥

कृत्यायु सुन्दर आनन्दा ।  भक्त जनन के काटहु फन्दा॥

कारण लम्ब आप भय भंजन ।  नमोनाथ जय जनमन रंजन॥

हो तुम देव त्रिलोचन नाथा ।  भक्त चरण में नावत माथा॥

त्वं अशतांग रुद्र के लाला ।  महाकाल कालों के काला॥

ताप विमोचन अरि दल नासा ।  भाल चन्द्रमा करहि प्रकाशा॥

श्वेत काल अरु लाल शरीरा ।  मस्तक मुकुट शीश पर चीरा॥

काली के लाला बलधारी ।  कहाँ तक शोभा कहूँ तुम्हारी॥

शंकर के अवतार कृपाला ।  रहो चकाचक पी मद प्याला॥

शंकर के अवतार कृपाला ।  बटुक नाथ चेटक दिखलाओ॥

रवि के दिन जन भोग लगावें ।  धूप दीप नैवेद्य चढ़ावें॥

दरशन करके भक्त सिहावें ।  दारुड़ा की धार पिलावें॥

मठ में सुन्दर लटकत झावा ।  सिद्ध कार्य कर भैरों बाबा॥

नाथ आपका यश नहीं थोड़ा ।  करमें सुभग सुशोभित कोड़ा॥

कटि घूँघरा सुरीले बाजत ।  कंचनमय सिंहासन राजत॥

नर नारी सब तुमको ध्यावहिं ।  मनवांछित इच्छाफल पावहिं॥

भोपा हैं आपके पुजारी ।  करें आरती सेवा भारी॥

भैरव भात आपका गाऊँ ।  बार बार पद शीश नवाऊँ॥

आपहि वारे छीजन धाये ।  ऐलादी ने रूदन मचाये॥

बहन त्यागि भाई कहाँ जावे ।  तो बिन को मोहि भात पिन्हावे॥

रोये बटुक नाथ करुणा कर ।  गये हिवारे मैं तुम जाकर॥

दुखित भई ऐलादी बाला ।  तब हर का सिंहासन हाला॥

समय व्याह का जिस दिन आया ।  प्रभु ने तुमको तुरत पठाया॥

विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ ।  तीन दिवस को भैरव जाओ॥

दल पठान संग लेकर धाया ।  ऐलादी को भात पिन्हाया॥

पूरन आस बहन की कीनी । सुर्ख चुन्दरी सिर धर दीनी॥

भात भेरा लौटे गुण ग्रामी ।  नमो नमामी अन्तर्यामी॥

॥ दोहा ॥

जय जय जय भैरव बटुक,  स्वामी संकट टार।

कृपा दास पर कीजिए,  शंकर के अवतार॥

जो यह चालीसा पढे,  प्रेम सहित सत बार।

उस घर सर्वानन्द हों,  वैभव बढ़ें अपार॥

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