Monday, July 21, 2025
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Homeआरती॥ श्री कुंजबिहारी जी की आरती ॥

॥ श्री कुंजबिहारी जी की आरती ॥

आरती कुंजबिहारी की… श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

गले में वैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।

श्रवन में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ॥

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।

लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की… आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं|

गगन सों सुमन रासि बरसै;

बजे मुरचग मुधर मिरदंग, ग्वालिन संग; अतुल रति गोप कुमारी की ॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की… आरती कुंजबिहारी की… श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की..

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।

स्मरन ते होत मोह भंगाः

बसी शिव शीश, जटाके बीच, हरै अघ कीच; चरन छवि श्रीबनवारी की ॥

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चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू

चहूँ दिसि गोपि ग्वाल धेनू;

हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद; टेर सुनु दीन भिखारी की ॥

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